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कथा के प्रथम दिवस अयोध्या के प्रख्यात कथा व्यास आचार्य सुरेंद्र द्वारा ने लोगों को बताया भागवत का महात्म्य।

Pramod Kumar
Pramod Kumar
Updated Dec 9, 2024
कथा के प्रथम दिवस अयोध्या के प्रख्यात कथा व्यास आचार्य सुरेंद्र द्वारा ने लोगों को बताया भागवत का महात्म्य।

जहा बेटियों का सम्मान होता है वहा ईश्वर का निवास होता है-आचार्य सुरेंद्र पांडेय

गायत्रीनगर में आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा का शुभारम्भ।

मवई, अयोध्या - जिस घर मे बेटियों का सम्मान होता है निश्चित रूप से वहां भगवान निवास करता है। इसलिये घर मे सुख शांति व प्रगति के लिये महिलाओं बेटियों का सम्मान करना अति आवश्यक है। ये संदेश देते हुई अयोध्या के प्रख्यात मानस प्रवक्ता आचार्य सुरेंद्र पांडेय ने युवाओं को सन्देश देते हुए श्रोताओं को श्रीमद् भागवत् कथा का महात्म बताया। इन्होंने बताया कि मनुष्य को अपने बल व पराक्रम पर गर्व नहीं करना चाहिये,क्योंकि घमण्ड ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रू है।

ये  विचार गायत्रीनगर के विशाल प्रांगण में प्रारंभ श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिवस कथा व्यास आचार्य सुरेंद्र पांडेय ने ब्यक्त किया। उन्होंने अपनी कथा के प्रथम दिन काशी में जन्मे आत्मदेव धुंधुली की कथा सुनाई। जिसमे बताया गया कि पति की आज्ञा न मानने वाली धुंधुली को उसी के पुत्र ने मार दिया और उस पुत्र को बैश्याओं ने जिंदा जला दिया। जबकि गौमाता के गर्भ से जन्मा धुंधुली के दूसरे पुत्र गोकरन ने अपने भाई धुंधकारी की भटकती आत्मा को श्रीमद् भागवत् की कथा सुनाकर मोक्ष्य प्राप्त कराया।

कथा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि भागवत को सुनने से सभी पाप कट जायेंगे। जैसे कि गोकर्ण ने कथा कही और उसके दुराचारी भाई धुंधकारी ने मनोयोग से उसे सुना और उसको मोक्ष प्राप्त हो गया। कई लोगों ने प्रश्न किया कि जब प्रेतयोनि वाले धुंधकारी को मोक्ष मिल गई और हमको क्यों नहीं ?उत्तर मिला धुंधकारी ने कथा मनोयोग से सुनी,आपने नहीं,भक्ति हार्दिकता का नाम है। वह औपचारिकता या कर्मकाण्ड नहीं। कथा प्रवर ने कहा भागवत कथा का केन्द्र है आनंद। आनंद की तल्लीनता में पाप का स्पर्श भी नहीं हो पाता। नियम बनाया गया है कि कथा सुनते समय काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मान, ईष्र्या तथा द्वेष से सदा दूर रहें। देखें आपका जीवन भी सदाचार वृत को धारण करके समाज में सद व्यवहार तथा सत्यता का पालन करने पर धुंधकारी की तरह मोक्ष को प्राप्त होता है, अथवा नहीं।

कथा के मध्य अयोध्या धाम से चारु सिला के उत्तराधिकारी संत अवधेश जी महाराज पहुंचे और श्रद्धालुओं को बताया कि भागवत कथा वो अमृत है जिसका जितना भी पान किया जाए उतना ही कम है। मनुष्य इसका श्रवण कर अपने जीवन को धन्य बना सकता है। इन्होंने बताया भक्ति के दो पुत्र हैं-एक ज्ञान, दूसरा वैराग्य। भक्ति बड़ी दुखी थी, उसके दोनों पुत्र वृद्धावस्था में आकर भी सोये पड़े हैं। वेद वेदान्त का घोल किया गया। किन्तु वे नहीं जागे। यह बड़ा विचित्र और विचार का विषय था। भक्ति बड़ी दुखी थी कि यदि वे नहीं जागे तो यह संसार गर्त में चला जायेगा। भागवतकार के समक्ष यह चुनौती रही होगी कि वेद पाठ करने पर भी आत्मज्ञान नहीं और वेदांत के पाठ करने पर वैराग्य नहीं जगा। इसे ही गीता में भगवान कृष्ण ने मिथ्याचार कहा है।

भागवत कथा सुनते ही ज्ञान और वैराग्य जाग जाये। नारद जी ने भक्ति सूत्र की व्याख्या करते हुए भी भक्ति को प्रेमारूपा बताया है। वह अमृत रूपणी है जिसे पाकर मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है फिर वह कुछ और नही चाहता है। वह मस्त होकर स्तब्ध हो जाता है। अतः भक्ति की व्याख्या अद्भुत् है। इस सबका शोध श्रीभगवत कथा का महात्म्य है। इस अवसर पर कथा के मुख्य यजमान जय प्रकाश मिश्र कार्यक्रम संरक्षक रामनरेश तिवारी शिव कुमार मणि त्रिपाठी ब्लॉक प्रमुख मवई राजीव तिवारी बृजेश मिश्र विजय मिश्र रमापति गुप्ता आकाश मणि त्रिपाठी अमरनाथ गुप्ता कैलाश नाथ गुप्ता श्याम जी गुप्ता विजय मिश्र दीपक शुक्ला अनूप मिश्र "गुरुजी" अर्पित मिश्र नवदीप आदि लोगों ने श्रीमदभागवत कथा सुधा सरिता का रसपान किया।