अयोध्या।फिरोजपुर पवारान में दो प्रतिबंधित हरे पेड़ों की बलि चढ़ गई। आरी की आवाज़ गूंजी, लकड़ियां गिरीं, और ठेकेदारों ने चैन की सांस ली। लेकिन वन विभाग और पुलिस? दोनों ही या तो चैन की बंसी बजा रहे थे या फिर आंखों पर हरी पट्टी बांधे बैठे थे।
सूत्र बताते हैं कि घटना की सूचना वन रेंजर जेपी गुप्ता तक पहुंची थी, मगर उनकी कुर्सी शायद पेड़ों से ज़्यादा मजबूत निकली। मौके पर टीम भेजने की बात कही गई, लेकिन जब तक टीम पहुंची, आरी अपना काम कर चुकी थी।
गांव वालों का कहना है कि हरे पेड़ों की कटाई कोई नई बात नहीं। यह सब पुलिस और वन विभाग की मिलीभगत से चल रहा है। जुर्माने की रस्म अदायगी होती है और ठेकेदार और भी ताक़तवर हो जाते हैं।
वन विभाग का कहना है कि “पेड़ों की नहीं, सिर्फ टहनियों की कटाई हुई है, वो भी बिजली के तारों की वजह से।”
गांव वाले हंसते हुए पूछते हैं – “तो क्या बिजली बचाने के लिए पूरा जंगल ही काट दिया जाएगा?”
विभाग की टीम हमेशा वहीं पहुंचती है, जहां पेड़ नहीं, सिर्फ ठूंठ बचते हैं।
पुलिस की भूमिका पेड़ की छांव जैसी—दूर से दिखती है, पास जाकर कुछ हाथ नहीं आता।
जुर्माना वसूलना अब हरियाली पर ‘हरी कमाई’ करने का जरिया बन चुका है।
वन रेंजर जेपी गुप्ता ने कहा – “कटाई की पुष्टि होने पर ठेकेदारों पर कार्रवाई होगी।”
अब सवाल यह है कि कार्रवाई होगी भी, या यह बयान भी उन पेड़ों की तरह हवा में उड़ जाएगा जो अब गांव की धरती पर नहीं हैं।